बिहार में एनडीए की सुनामी, लेकिन महिषी में एक आम आदमी की जीत ने इतिहास बदल दिया
India News Live,Digital Desk : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की जीत इतनी भारी थी कि पूरा राजनीतिक माहौल बदल गया। 243 सीटों में से 202 पर कब्जा जमाकर गठबंधन ने इतिहास रच दिया। भाजपा को 89 और जद(यू) को 85 सीटें मिलीं। महागठबंधन मुश्किल से 30–40 सीटें ही बचा पाया। पूरे राज्य में एक ही लहर थी—एनडीए की।
लेकिन इसी लहर के बीच सहरसा जिले की महिषी सीट पर एक ऐसा नतीजा आया जिसने सभी को चौंका दिया।
यहां आरजेडी प्रत्याशी और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी डॉ. गौतम कृष्णा ने जद(यू) के मजबूत उम्मीदवार गुंजेश्वर साह को हराकर बड़ी जीत दर्ज की। यह सिर्फ राजनीतिक परिणाम नहीं था, बल्कि उस संघर्ष की जीत थी जो एक आम आदमी ने अपने दम पर लड़ा।
महिषी में लहर की नहीं, चेहरे की जीत हुई
2020 के चुनाव में गुंजेश्वर साह ने डॉ. गौतम को सिर्फ 1,630 वोटों से हराया था। इस बार माहौल अलग था। राज्य में एनडीए का मजबूत प्रभाव था और महागठबंधन की स्थिति कमजोर। इसके बावजूद महिषी में जनता ने डॉ. गौतम पर भरोसा जताया।
2025 में नतीजा कई लोगों के लिए अप्रत्याशित रहा—
डॉ. गौतम को 93,752 वोट मिले, जबकि गुंजेश्वर साह 90,012 वोटों पर रुक गए।
अन्य उम्मीदवारों को सीमित समर्थन मिला और मैदान मुख्य रूप से आरजेडी बनाम जद(यू) का रहा।
बाढ़ की भूमि से राजनीति की मुख्यधारा तक
महिषी बार-बार आने वाली बाढ़ के लिए जाना जाता है। इसी इलाके के एक साधारण किसान परिवार में डॉ. गौतम कृष्णा का जन्म हुआ। पिता विष्णुदेव यादव हर साल बाढ़ से लड़ते हुए भी बेटे को पढ़ाई का महत्व समझाते थे। यही संघर्ष आगे चलकर गौतम के व्यक्तित्व का हिस्सा बन गया।
उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में पीएचडी की और प्रशासनिक सेवा में बीडीओ बने। लेकिन 2015 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
उनका कहना है, “फाइलों में सीमित रहकर मैं अपने इलाके के लिए कुछ नहीं कर पाता। मुझे लोगों के बीच रहकर काम करना था।”
2020 की हार उन्हें रोक नहीं पाई। गांवों में लगातार संपर्क, लोगों के दुख-दर्द में शामिल होना और सादगी—यही उनकी पहचान बन गया।
वे आज भी चप्पल पहनकर चलते हैं, साइकिल से प्रचार करते हैं और खुद को ‘मजदूर का बेटा’ बताते हैं। यही सरलता उन्हें लोगों के दिल के करीब ले गई।
स्थानीय मुद्दों पर फोकस ने दिलाए वोट
राज्य में विकास और कानून-व्यवस्था के बड़े मुद्दे चले, लेकिन डॉ. गौतम ने सिर्फ उन समस्याओं पर बात की जिनका सामना महिषी रोज करता है।
बाढ़ नियंत्रण, स्वास्थ्य व्यवस्था, नालियां, रोजगार—ये विषय लोगों की जरूरतों से सीधे जुड़े थे।
उनकी बातों में वादा कम, भरोसा ज्यादा दिखा और यही भरोसा चुनाव नतीजे में भी दिख पड़ा।
चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक, यादव वोट, युवाओं का समर्थन और व्यक्तिगत लोकप्रियता—तीन कारकों ने एनडीए के मजबूत आधार में सेंध लगाई।
एक सादगीभरी जीत का असर
डॉ. गौतम के पास बड़ी संपत्ति नहीं है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति करीब 1.3 करोड़ रुपये है और उनके खिलाफ पांच मामले दर्ज हैं, जिन्हें वे राजनीतिक दबावों का नतीजा बताते हैं।
लेकिन इन सबके बावजूद जनता ने उनके साथ खड़े होने का फैसला किया।
एनडीए की सुनामी में जहां बाकी सीटें बह गईं, महिषी ने डॉ. गौतम को अपने साथ खड़ा पाया।
उनकी जीत इस बात का प्रमाण है कि राजनीति सिर्फ बड़े नामों और बड़े संसाधनों से नहीं चलती—सच्चे इरादे और जनता का विश्वास सबसे बड़ी ताकत होते हैं।