भारत बना उम्मीद की मिसाल, पाकिस्तान अब भी गरीबी की गिरफ्त में

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India News Live, Digital Desk: पड़ोसी देश पाकिस्तान एक ओर जहां महंगाई और आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है, वहीं भारत ने बीते कुछ वर्षों में गरीबी पर बड़ी जीत हासिल की है। दोनों देशों की तस्वीर एकदम अलग दिखाई दे रही है। एक ओर भारत आर्थिक मोर्चे पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है, दूसरी ओर पाकिस्तान लगातार कर्ज़ के जाल और भूख-प्यास की ओर खिसकता जा रहा है।

भारत ने कैसे दी गरीबी को मात

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2011-12 में भारत की लगभग 27.1% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रही थी। लेकिन 2022-23 तक यह आंकड़ा गिरकर 5.3% पर आ गया है। यह बदलाव मामूली नहीं है—लगभग 26.9 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। यह संख्या पाकिस्तान की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है। भारत में यह बदलाव सरकार की नीतियों, जन कल्याणकारी योजनाओं और विकास केंद्रित दृष्टिकोण का परिणाम माना जा सकता है।

पाकिस्तान में क्यों बढ़ रही है गरीबी?

वहीं पाकिस्तान की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। 2017-18 में जहां अत्यधिक गरीबी 4.9% थी, वहीं 2020-21 तक यह बढ़कर 16.5% पहुंच गई। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान में हर छठा व्यक्ति अत्यंत गरीबी में जी रहा है।

विश्व बैंक की नई परिभाषा ने खोली हकीकत

विश्व बैंक ने हाल ही में गरीबी की परिभाषा में बदलाव किया है। अब अत्यधिक गरीबी की सीमा 2.15 डॉलर से बढ़ाकर 3 डॉलर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कर दी गई है। इस नए पैमाने पर पाकिस्तान की स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है।

कर्ज़ के बावजूद हालात क्यों नहीं सुधर रहे?

पाकिस्तान भारी-भरकम विदेशी कर्ज़ तो लेता है, लेकिन उसका सही उपयोग नहीं हो रहा। विकास की बजाय इन पैसों का इस्तेमाल सेना और आतंकी नेटवर्क को मजबूत करने में किया जाता है। यही वजह है कि आम जनता को ना तो रोजगार मिल रहा है, ना ही जीवन में कोई स्थिरता।

इस आर्थिक और सामाजिक दिशा ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान की सरकार की प्राथमिकताएं देश की जनता नहीं, बल्कि राजनीतिक और सैन्य हितों तक सीमित हैं।