Sajeeb Wazed's scathing attack on the International Tribunal's sentence : यूनुस मेरी मां को छू भी नहीं सकता

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India News Live,Digital Desk : बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल कोर्ट ने मानवता के खिलाफ कथित अपराधों के एक मामले में मौत की सजा सुनाई है। इस फैसले के बाद उनकी राजनीतिक बहस और तेज हो गई है। वहीं भारत में निर्वासन में रह रहीं हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने इस फैसले को पूरी तरह “अवैध और पक्षपाती” बताया और मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस पर गंभीर आरोप लगाए।

वाजेद ने कहा कि यूनुस न तो उनकी मां को पकड़ पाएंगे और न ही उन्हें नुकसान पहुंचा पाएंगे। उन्होंने साफ कहा—
“यूनुस मेरी मां को छू भी नहीं सकता। वह कुछ नहीं कर पाएगा।”

“बांग्लादेश की स्थिति असंवैधानिक”

सजीब वाजेद ने समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कहा कि इस समय बांग्लादेश की स्थिति “अवैध और असंवैधानिक” है। उनका दावा है कि एक बार देश में कानून और व्यवस्था बहाल हो जाए, तो यह पूरा मामला खुद ही गिर जाएगा।

उन्होंने कहा कि यूनुस उनकी मां को तो नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे, लेकिन फैसले को लागू कराने की कोशिश जरूर करेंगे।
“लेकिन जैसे ही देश में कानून का शासन वापस आएगा, यह पूरा प्रोसेस रद्द हो जाएगा।”

मोदी सरकार का आभार

सजीब वाजेद ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया। उन्होंने कहा—
“मैं पीएम मोदी और भारत सरकार का हमेशा धन्यवाद करूंगा। उन्होंने मेरी मां की जान बचाई है और उन्हें पूरी सुरक्षा में रखा है।”

“यह फैसला एक मजाक है”

वाजेद ने इस फैसले को “पूरी तरह अवैध” बताते हुए कई कारण गिनाए —

  • बांग्लादेश में इस समय कोई निर्वाचित सरकार नहीं है।
  • ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया तेज करने के लिए कानून बदला गया, जबकि संसद है ही नहीं।
  • 17 न्यायाधीशों को हटाकर अनुभवहीन न्यायाधीश को नियुक्त किया गया, जिसने पहले हसीना पर अपमानजनक टिप्पणी की थी।
    इस आधार पर उन्होंने कहा कि पूरा ट्रायल ही “पक्षपाती और हास्यास्पद” था।

वकील नियुक्त करने की भी अनुमति नहीं

वाजेद ने यह भी आरोप लगाया कि हसीना को अपना वकील चुनने की इजाजत नहीं दी गई। अधिकारियों ने खुद ही उनकी तरफ से वकील नियुक्त कर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में आमतौर पर सालों लग जाते हैं, लेकिन इस मामले को महज 140 दिनों में निपटा दिया गया।
उनके अनुसार, यह “न्याय का मजाक” है और इसका कोई कानूनी आधार नहीं बचता।