Allahabad University's treasure trove opens to the public : तीन लाख साल पुरानी मानव सभ्यता की झलक अब सभी देख सकेंगे

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India News Live,Digital Desk : इलाहाबाद विश्वविद्यालय का संग्रहालय अब आम जनता के लिए खोल दिया गया है। यहां रखी गई धरोहरें भारत की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और धार्मिक विकास की कहानी सुनाती हैं। पहले यह संग्रह केवल शोधार्थियों के लिए खुला था, लेकिन अब हर कोई मानव इतिहास के लाखों साल पुराने साक्ष्यों को नजदीक से देख सकेगा।

आदिमानव के औजार से लेकर मातृदेवी की प्रतिमा तक

संग्रहालय में तीन लाख वर्ष पुराने पत्थर के औजार रखे गए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि मानव सभ्यता ने किस तरह अपने शुरुआती औजार बनाए। पास ही शीशे के केस में मातृदेवी की 22 हजार वर्ष पुरानी प्रतिमाएं सजी हैं — ये प्रतिमाएं मानव समाज में देवी और प्रकृति की पहली अवधारणा को दर्शाती हैं।

प्रकृति और जीवों की कहानी

यहां सोन घाटी और बेलन घाटी से मिले दरियाई घोड़े (हिप्पो) और बाइसन के जीवाश्म रखे गए हैं, जो डेढ़ से दो लाख वर्ष पुराने हैं। नौ फीट लंबे हाथी के दांत संग्रहालय का विशेष आकर्षण हैं। ये साक्ष्य इस बात का प्रमाण हैं कि कभी भारत के इस भूभाग में जैव विविधता अत्यंत समृद्ध थी।

कौशांबी उत्खनन से जुड़े ऐतिहासिक प्रमाण

संग्रहालय के दूसरे हिस्से में कौशांबी उत्खनन से मिली सामग्री रखी गई है — इनमें सिक्के, मुहरें, आभूषण, बुद्ध प्रतिमाएं और धर्मचक्र शामिल हैं। यहां 530 ईस्वी में हूण शासक तोरमाड़ के हमले से जुड़ी मुद्राएं भी रखी गई हैं, जो उस काल की राजनीतिक उथल-पुथल की साक्षी हैं।

शोध और अध्ययन का नया केंद्र

प्राचीन इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. शैलेश यादव बताते हैं कि यह संग्रहालय भारत की सांस्कृतिक स्मृति का जीवंत प्रमाण है। उनका कहना है कि आम लोग इन धरोहरों को देखकर उनके पीछे की कहानी समझें — यही उद्देश्य है।
डॉ. अतुल नारायण सिंह का कहना है कि पहले यह संग्रहालय केवल अनुसंधान के लिए था, लेकिन अब आम नागरिक भी अपनी सभ्यता के विकासक्रम को नजदीक से देख सकेंगे।

प्रवेश शुल्क और सुविधा

स्कूली छात्रों के लिए प्रवेश शुल्क मात्र ₹5, स्नातक-परास्नातक छात्रों के लिए ₹10 और शोध छात्रों के लिए ₹50 रखा गया है। शोध कार्य से जुड़ी फोटोग्राफी के लिए प्रति वस्तु ₹250 शुल्क देना होगा।