दिल्ली की हवा साफ दिखती है, मगर वहीं है असली समस्या
- by Priyanka Tiwari
- 2025-10-25 21:17:00
India News Live,Digital Desk : दिल्ली में अक्सर कहा जाता है कि प्रदूषण पर अब काबू पा लिया गया है। लेकिन हाल ही में हुए एक शोध से पता चला कि यह सिर्फ मौसम का जादू है। हवा तेज चली या बारिश हुई, तो हवा साफ दिखती है, मगर जब मौसम सामान्य होता है, दिल्ली फिर उसी धुंध में घिर जाती है।
यूरोपियन जियोसाइंस यूनियन के जर्नल EGU-Sphere में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली का प्रदूषण नियंत्रण किसी नीति की सफलता नहीं, बल्कि मौसम की कृपा पर निर्भर है। यानी सरकार के उपायों का असर सीमित है; असली कारण—वाहन, कारखाने और निर्माण स्थलों से निकलने वाला प्रदूषण—ज्यों का त्यों बना हुआ है।
पांच साल के आंकड़े क्या बताते हैं?
शोध में वैज्ञानिकों ने 2019 से 2024 तक दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) और मौसम से जुड़े डेटा का विश्लेषण किया। तापमान, नमी, वर्षा और हवा की गति जैसी मौसमी परिस्थितियों को अलग करके यह देखा गया कि असली प्रदूषण स्तर में कितनी कमी आई।
परिणाम बताते हैं:
- मौसम का असर हटाने पर पिछले पांच सालों में हवा में प्रदूषण का स्तर लगभग वैसा ही रहा।
- सर्दियों में PM2.5 की मात्रा 140-145 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रही, जबकि WHO की सुरक्षित सीमा सिर्फ 15 माइक्रोग्राम है।
- PM10 का स्तर 270 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के आसपास रहा।
यानि हवा में धूल और जहरीले कणों में कोई वास्तविक कमी नहीं आई।
दिल्ली की हवा कुछ दिनों के लिए साफ क्यों दिखती है?
शोध में यह भी बताया गया कि मानसून और तेज हवाओं के दौरान प्रदूषण के कण नीचे बैठ जाते हैं। इस समय PM2.5 की मात्रा घटकर 60-70 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक आ जाती है। लेकिन यह सुधार अस्थायी होता है। जैसे ही हवा धीमी होती है या मौसम सूखा होता है, वही धूल और धुआं फिर फैल जाता है।
साफ शब्दों में, दिल्ली की हवा का असली सुधार नीतियों और उत्सर्जन स्रोतों के नियंत्रण पर निर्भर है, मौसम पर नहीं।
सरकारी प्रयासों का असर
दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कई कदम उठाए हैं:
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान लागू करना
- निर्माण कार्यों पर रोक
- सड़कों पर पानी का छिड़काव
- पुराने वाहनों पर प्रतिबंध
लेकिन शोध कहता है कि इन कदमों से मूल प्रदूषण स्तर में कोई खास बदलाव नहीं आया। वाहनों से निकलने वाला धुआं, डीजल जेनरेटर और निर्माण स्थलों की धूल हवा में लंबे समय तक बनी रहती है।
एक उदाहरण:
2020 के कोरोना लॉकडाउन में जब यातायात और उद्योग ठप थे, हवा साफ हुई। मगर अगले साल यह फिर पुराने स्तर पर लौट गई। यह साफ दिखाता है कि असल सुधार तब आएगा जब नीतियां मौसम के बजाय प्रदूषण के वास्तविक स्रोतों पर आधारित हों।