सीजफायर के बाद अब ईरान के परमाणु भविष्य पर सवाल, जानिए 58 साल की परमाणु यात्रा की कहानी

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India News Live,Digital Desk : 13 दिन की खून-खराबे और मिसाइल-ड्रोन हमलों के बाद आखिरकार इजरायल और ईरान संघर्ष विराम पर सहमत हो गए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 24 जून की सुबह इस सीजफायर की घोषणा की। हालांकि, इसके कुछ घंटों बाद ही दोनों देशों ने एक-दूसरे पर फिर से हमले के आरोप लगाए। बावजूद इसके, दोपहर तक हालात शांत हो गए और संघर्ष विराम की पुष्टि हुई।

लेकिन असली सवाल यही है—अब ईरान के परमाणु कार्यक्रम का क्या होगा? अमेरिका लंबे समय से ईरान के इस प्रोजेक्ट का विरोध करता आया है। इस सवाल का जवाब समझने के लिए हमें ईरान की लगभग छह दशकों लंबी परमाणु यात्रा पर नजर डालनी होगी।

कैसे शुरू हुई ईरान की परमाणु यात्रा?

यह कहानी शुरू होती है 1953 से, जब अमेरिका के राष्ट्रपति आइजनहावर ने संयुक्त राष्ट्र में ‘एटम्स फॉर पीस’ कार्यक्रम की शुरुआत की। इस योजना का मकसद था कि परमाणु तकनीक का इस्तेमाल शांति और विकास के लिए किया जाए। इसी योजना के तहत अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों को परमाणु तकनीक दी। उस वक्त ईरान में सत्ता परिवर्तन हुआ था, जब सीआईए की मदद से मोहम्मद मोसद्दिक को हटाकर शाह रजा पहलवी को गद्दी दी गई।

अमेरिका ने ईरान को दिया पहला रिएक्टर

1960 के दशक में अमेरिका ने ईरान को 'तेहरान रिसर्च रिएक्टर' नाम का छोटा न्यूक्लियर रिएक्टर गिफ्ट किया। यह रिएक्टर आज भी सुरक्षित स्थिति में मौजूद है और यह संकेत देता है कि अमेरिका कभी ईरान का सहयोगी रहा था।

ईरान ने किन देशों से किए समझौते?

1974 में शाह पहलवी ने फ्रांस से पांच रिएक्टरों का सौदा किया और जर्मनी व दक्षिण अफ्रीका से यूरेनियम की आपूर्ति पर भी सहमति बनी। लेकिन 1970 के दशक के आखिर में अमेरिका को शक हुआ कि ईरान शायद हथियार बनाने की दिशा में भी बढ़ रहा है। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने रिएक्टरों के लिए फ्यूल रिप्रोसेसिंग पर रोक लगा दी।

इस्लामिक क्रांति के बाद कार्यक्रम पर ब्रेक

1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद शाह की सत्ता चली गई और अयातुल्ला खुमैनी के हाथ में ईरान की बागडोर आ गई। शुरुआत में नई सरकार ने परमाणु कार्यक्रम को पश्चिमी साजिश माना और उसे रोक दिया।

ईरान की सोच कैसे बदली?

1980 के दशक में जब ईरान-इराक युद्ध हुआ, तब खुमैनी को अहसास हुआ कि परमाणु ताकत जरूरी है। इसी के बाद ईरान ने पाकिस्तान के वैज्ञानिक डॉ. ए क्यू खान से संपर्क किया और उनसे सेंट्रीफ्यूज तकनीक हासिल की, जिससे यूरेनियम को हथियार स्तर तक संवर्धित किया जा सकता था।

ईरान के गुप्त स्थलों का पर्दाफाश

2002 में दुनिया को पहली बार पता चला कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु कार्यक्रम चला रहा है। यह खुलासा विपक्षी गुट, सैटेलाइट इमेज और खुफिया जानकारी के जरिए हुआ। इसके बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने दबाव बनाना शुरू किया।

2025 में फिर से सैन्य कार्रवाई

हाल ही में 24 जून 2025 को, जब इजरायल और ईरान के बीच युद्ध चल रहा था, अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—नतांजा, अराक और फोर्डो—पर बमबारी की और उन्हें काफी हद तक नुकसान पहुंचाया।

अब आगे क्या?

ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी का कहना है कि अमेरिका और इजरायल के हमलों से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई की जा रही है और परमाणु कार्यक्रम जारी रहेगा।