Political battle on the ground : जम्मू-कश्मीर विधानसभा में ‘संरक्षक’ बनने की होड़
India News Live,Digital Desk : जम्मू-कश्मीर विधानसभा का आगामी सत्र इस बार खासा गरम रहने वाला है। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ही खुद को कश्मीर का “सबसे बड़ा रक्षक” दिखाने की कोशिश में जुटे हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि आने वाले सत्र में “जमीन के अधिकार” पर सबसे ज्यादा बहस होगी। दोनों दलों—पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस—ने इसके संकेत पहले ही दे दिए हैं।
पीडीपी का ‘एंटी बुलडोजर बिल’
पीडीपी ने जो बिल तैयार किया है, उसे पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने “एंटी बुलडोजर बिल” नाम दिया है। उनका कहना है कि 2019 के बाद से सरकार ने कई इलाकों को “सरकारी जमीन” बताकर वहां रह रहे लोगों को बेघर कर दिया।
महबूबा का आरोप है कि कई होटल मालिकों की लीज बढ़ाने के बजाय उन्हें खत्म कर दिया गया। उन्होंने कहा—
“हमारा बिल उन लोगों के लिए है जो 30 साल से अधिक समय से किसी भूमि पर रह रहे हैं। ऐसे लोगों को हम मालिकाना हक देकर बेदखली के डर से मुक्त करना चाहते हैं।”
यह कदम पीडीपी की “जनहित” छवि को मजबूत करने की कोशिश माना जा रहा है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस का ‘जमीन अनुदान बिल’
वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) भी पीछे नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा कि उनकी पार्टी भी एक निजी विधेयक लाने जा रही है—‘जम्मू-कश्मीर लैंड ग्रांट्स (रिस्टोरेशन एंड प्रोटेक्शन) बिल’।
इस बिल का मकसद 2022 में हुए बदलावों को वापस लेकर 1960 के पुराने ढांचे को बहाल करना है।
तनवीर सादिक के अनुसार,
“हमारा उद्देश्य स्थानीय पट्टाधारकों और सार्वजनिक संस्थानों की जमीन की सुरक्षा करना है, ताकि बाहरी हस्तक्षेप से स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा हो सके।”
विशेषज्ञों की राय: सियासत में ‘जमीन’ सबसे आसान हथियार
कश्मीर मामलों के जानकार जावेद अहमद मलिक मानते हैं कि जमीन, रोजगार और राज्य का दर्जा—ये ऐसे मुद्दे हैं जो आम कश्मीरियों की भावनाओं से गहराई से जुड़े हैं।
उनके अनुसार,
“लोगों में डर है कि उनकी जमीनें और नौकरियां उनसे छीनी जा रही हैं। ऐसे में हर राजनीतिक दल के लिए ‘कश्मीर का सच्चा संरक्षक’ दिखना आसान तरीका बन गया है।”
उन्होंने यह भी कहा कि निजी बिलों का पारित होना मुश्किल होता है—कश्मीर के इतिहास में यह शायद दो या तीन बार ही हुआ है।
23 अक्टूबर से शुरू होगा विधानसभा सत्र—हंगामे के पूरे आसार
23 अक्टूबर से शुरू होने जा रहा जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चौथा सत्र काफी गर्म रहने की संभावना है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस को न सिर्फ पीडीपी और भाजपा जैसे विरोधियों से, बल्कि अपने सहयोगी दलों—कांग्रेस और माकपा—से भी तीखे सवालों का सामना करना पड़ सकता है।
राज्य के दर्जे की बहाली, रोजगार, और स्थानीय अधिकार जैसे मुद्दों पर जमकर बहस और हंगामा होने की उम्मीद है।