Kalidhar Missing : एक अनाथ बच्चे की मासूम दोस्ती और एक टूटते जीवन की मार्मिक यात्रा

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India News Live,Digital Desk : ‘कालीधर लापता’ एक संवेदनशील और दिल को छू लेने वाली फिल्म है, जो 2019 की तमिल फिल्म ‘के.डी’ की हिंदी रीमेक है। फिल्म की मूल लेखिका और निर्देशक मधुमिता ने ही इसके हिंदी संस्करण को भी निर्देशित किया है। अभिषेक बच्चन, दैविक बाघेला और मुहम्मद जीशान अयूब अभिनीत यह फिल्म रिश्तों, दर्द और इंसानी जज्बातों की गहराई को छूती है।

कहानी का सार:

यह कहानी कालीधर (अभिषेक बच्चन) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक मानसिक बीमारी ‘हेल्यूसिनेशन’ से पीड़ित है। उसकी यह बीमारी परिवार के लिए बोझ बन जाती है, जिससे छुटकारा पाने के लिए उसके दोनों भाई उसे कुंभ मेले में अकेला छोड़ देते हैं और उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराते हैं।

कालीधर की मुलाकात एक अनाथ बच्चे बल्लू (दैविक बाघेला) से होती है, जो उसकी अधूरी इच्छाओं को पूरा करने में उसका साथी बन जाता है। बल्लू और कालीधर के बीच की दोस्ती, उनका सफर, और परिवार की हकीकतों का सामने आना फिल्म की मूल आत्मा है।

हिंदी रीमेक में बदलाव:

तमिल फिल्म में मुख्य किरदार 80 वर्षीय बुजुर्ग हैं जबकि हिंदी संस्करण में कालीधर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति है।

फिल्म में उत्तर भारतीय परिवेश के अनुसार कई दृश्य बदले गए हैं, लेकिन कुछ दृश्यों की प्रामाणिकता पर सवाल भी उठते हैं।

बीमारी का चित्रण कुछ जगहों पर अधूरा लगता है, जैसे कि बीमारी होने के बावजूद कालीधर की याददाश्त कुछ दृश्यों में सही दिखती है।

अभिनय और तकनीकी पक्ष:

अभिषेक बच्चन ने अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाया है और कालीधर की भावनात्मक उलझनों को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।

दैविक बाघेला के रूप में बाल कलाकार ने फिल्म में जान डाल दी है। उनकी मासूमियत और परफॉर्मेंस दर्शकों को बांधे रखती है।

मुहम्मद जीशान अयूब और निम्रत कौर सहायक भूमिकाओं में कहानी को संतुलन प्रदान करते हैं।

गीत-संगीत में गीत सागर और अमित त्रिवेदी की जोड़ी ने भावनात्मक रंग भरा है।

सिनेमैटोग्राफी में गांव की सादगी और प्राकृतिक सौंदर्य को गैरिक सरकार ने खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है।

फिल्म का संदेश:

‘कालीधर लापता’ एक मानवीय रिश्तों, उपेक्षा और अपनत्व के बीच की जटिलता को सरल और संवेदनशील अंदाज में पेश करती है। फिल्म सादगी भरे संवादों और दिल छू लेने वाले पलों के साथ यह संदेश देती है कि हर व्यक्ति, चाहे वह मानसिक रूप से पीड़ित क्यों न हो, उसकी इच्छाओं और भावनाओं की कद्र की जानी चाहिए।