UN की 80वीं वर्षगांठ पर जयशंकर का सटीक वार – आतंकवाद पर दोहरे रवैये पर उठाए सवाल
India News Live,Digital Desk : संयुक्त राष्ट्र (UN) की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विश्व समुदाय को एक सच्चा और सख्त संदेश दिया। उन्होंने कहा कि आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती बहुपक्षवाद (Multilateralism) की साख बनाए रखने की है।
जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि आतंकवाद के खिलाफ इस संगठन की प्रतिक्रिया ही उसकी सबसे बड़ी परीक्षा है। उन्होंने कहा, “जब सुरक्षा परिषद का एक वर्तमान सदस्य खुलेआम उस संगठन का बचाव करता है जो पहलगाम जैसे बर्बर आतंकी हमलों की जिम्मेदारी लेता है, तो यह बहुपक्षवाद की विश्वसनीयता पर सीधा प्रहार है।”
“आतंक के पीड़ित और अपराधी एक जैसे नहीं हो सकते”
जयशंकर ने कहा कि दुनिया को यह तय करना होगा कि वह आतंकवाद के खिलाफ वास्तव में कितनी ईमानदार है।
उन्होंने सवाल उठाया, “अगर वैश्विक रणनीति के नाम पर आतंक के पीड़ितों और अपराधियों को बराबरी पर रखा जाता है, तो क्या यह दुनिया की सबसे बड़ी निंदकता नहीं है?”
उन्होंने कहा कि जब आतंकियों को प्रतिबंधों से बचाया जाता है, तो इसमें शामिल देशों की नीयत पर भी सवाल उठते हैं।
पहलगाम हमले पर भारत का जवाब
जयशंकर की यह टिप्पणी 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले से जुड़ी थी, जिसमें पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक की जान ले ली थी।
भारत ने इसका सटीक जवाब 7 मई की सुबह ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत दिया। इस अभियान में भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पीओके में मौजूद जैश-ए-मोहम्मद व लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों पर निशाना साधा।
भारत ने पाकिस्तान की बढ़ती आक्रामकता को भी नाकाम किया और उसके कई हवाई ठिकानों को निष्क्रिय कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पर सवाल
जयशंकर ने कहा कि अब संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि विकास और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के क्षेत्र में भी उसकी परीक्षा हो रही है।
उन्होंने कहा, “अगर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना सिर्फ एक दिखावा बनकर रह गया है, तो विकास की दिशा और भी चिंताजनक है।”
फिर भी उम्मीद बाकी है
अपनी तीखी आलोचनाओं के बावजूद जयशंकर ने उम्मीद का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा,
“इस ऐतिहासिक वर्षगांठ पर हम उम्मीद नहीं छोड़ सकते। चाहे राह कठिन हो, बहुपक्षवाद के प्रति हमारी प्रतिबद्धता बनी रहनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र को इन संकटों के बीच मजबूती से खड़ा होना होगा। अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर हमारा भरोसा न केवल दोहराया जाना चाहिए, बल्कि उसे फिर से मजबूत किया जाना चाहिए।”