सिर्फ हथियार न मिलने से नहीं बच सकते दोषी: हाईकोर्ट का सख्त रुख

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India News Live, Digital Desk: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया है कि यदि बाकी सबूत ठोस और भरोसेमंद हैं, तो सिर्फ इस आधार पर किसी को बरी नहीं किया जा सकता कि घटना में प्रयुक्त हथियार बरामद नहीं हुआ। अदालत ने बलिया के एक पुराने हत्या और साक्ष्य मिटाने के मामले में उम्रकैद की सजा पाए दोषियों की अपील खारिज करते हुए उनकी सजा को बरकरार रखा है।

यह फैसला न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार सिन्हा की खंडपीठ ने सुनाया। मामला 6 सितंबर 1984 का है, जब श्रीराम तिवारी ने पुलिस को सूचना दी कि उनके पड़ोसी की बहू अपने घर में जली हुई हालत में मृत पाई गई है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि महिला की गला घोंटकर हत्या की गई थी और चेहरे पर भी गहरी चोटें थीं। इससे यह संदेह मजबूत हुआ कि हत्या के बाद सबूत मिटाने के लिए शव को जलाने की कोशिश की गई।

बचाव पक्ष ने दलील दी कि मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है और गवाहों की बातों में विरोध है। उनका कहना था कि एफआईआर में शुरुआत में केवल एक आरोपी का नाम था और बाकी को बाद में झूठे तरीके से फंसाया गया।

लेकिन कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि चूंकि अपराध घर के भीतर हुआ, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत यह जिम्मेदारी घर में मौजूद लोगों की थी कि वे घटना की सच्चाई स्पष्ट करें। लेकिन आरोपी ऐसा कोई भरोसेमंद स्पष्टीकरण नहीं दे सके।

अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान एक-दूसरे से मेल खाते थे और विश्वसनीय पाए गए। वहीं, बचाव पक्ष के गवाहों की बातों पर अदालत ने भरोसा नहीं जताया।

अंततः खंडपीठ ने सजा को सही ठहराया और दोषियों को जेल भेजने का आदेश दिया। साथ ही, बलिया के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि एक सप्ताह के भीतर इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करें।