
भूमि या घर खरीदते समय रजिस्ट्री कराना अनिवार्य है। सरकार ने दोनों पक्षों से रजिस्ट्री के लिए कई दस्तावेज मांगे हैं। सरकार भी रजिस्ट्री चार्ज निर्धारित करती है। ये चार्ज स्थान और संपत्ति के प्रकार पर निर्भर करते हैं।
याद रखें कि जमीन का रजिस्ट्रेशन एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके तहत एक व्यक्ति की जमीन किसी दूसरे व्यक्ति के नाम पर ट्रांसफर की जाती है।
सरकार रजिस्ट्री पर लगने वाला चार्ज निर्धारित करती है
भारत में सरकार जमीन की रजिस्ट्री करती है। इस रजिस्ट्री पर जमीन की कीमत पर निर्धारित सरकारी शुल्क भी लगता है। यदि आप रजिस्ट्री शुल्क के बारे में अनजान हैं तो आप ऑनलाइन पोर्टल का उपयोग कर जान सकते हैं।
आज भी बहुत से लोगों को जमीन की रजिस्ट्री की पूरी जानकारी नहीं है। इसके दौरान लोगों से अक्सर अधिक पैसे भी ऐंठ लिए जाते हैं।
रजिस्ट्री का पैसा कैसे निर्धारित किया जाता है?
स्टांप ड्यूटी चार्ज, जमीन की रजिस्ट्री में खर्च होने वाले पैसे में सबसे बड़ा है। यानी जमीन की रजिस्ट्री में लगने वाले खर्चों को सरकार स्टांप से वसूलती है। स्टांप ड्यूटी प्रत्येक जमीन पर निर्भर करती है। जैसे गांव में जमीन खरीदने पर कम शुल्क लगता है।
लेकिन शहर में अधिक शुल्क देना होगा। भूमि की सरकारी दर या सर्किल दर के अनुसार ये स्टांप ड्यूटी चार्ज देना होगा। स्टांप शुल्क दरें राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं, इसलिए वे देश भर में अलग-अलग हैं।
जो संपत्ति मूल्य के 10 प्रतिशत से 3 प्रतिशत तक होता है। स्टांप शुल्क के अलावा, आपको राज्य भर में लागू होने वाले पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना होगा। पंजीकरण शुल्क आम तौर पर संपत्ति के कुल बाजार मूल्य का एक प्रतिशत होता है।
उदाहरण कैल्कुलेशन को समझने के लिए
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति दिल्ली में 60 लाख रुपये की संपत्ति खरीदना चाहता है, जहां स्टांप शुल्क दर 6% है, तो उसे स्टांप शुल्क के रूप में 3.6 लाख रुपये और पंजीकरण शुल्क के रूप में 60,000 रुपये का भुगतान करना होगा। वहीं अगर कोई महिला पंजीकरण कराती है तो उसे पुरुष के मुकाबले कम शुक्ल देना होता है।