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13 हजार साल बाद अचानक कैसे जिंदा हो गए ये भेड़िए, Game of Thrones से है कनेक्शन

13 हजार साल बाद अचानक कैसे जिंदा हो गए ये भेड़िए, Game of Thrones से है कनेक्शन

13 हज़ार साल बाद फिर ज़िंदा हुआ ‘डायर वुल्फ’

कभी जंगलों का खूँखार शिकारी रहा डायर वुल्फ जो 13,000 साल पहले धरती से गायब हो गया था अब दोबारा ज़िंदा हो चुका है. जी हां, जो जानवर अब तक सिर्फ fossil यानी जीवाश्म में मिलता था, अब वो असल में सांस ले रहा है. और दिलचस्प बात ये है कि ये वही डायर वुल्फ है, जो मशहूर वेब सीरीज Game of Thrones में स्टार्क हाउस के वफादार साथी के तौर पर दिखाया गया था.

और इसका पूरा श्रेय जाता है अमेरिका की एक बायोटेक कंपनी को, जिसने क्लोनिंग और जीन एडिटिंग की मदद से ये करिश्मा कर दिखाया है. डैलस (टेक्सास) स्थित Colossal Biosciences नाम की कंपनी ने तीन डायर वुल्फ पिल्लों को जन्म दिलाया है. वो भी आधुनिक ग्रे वुल्फ (भेड़िया) के DNA को बदलकर.

कैसे लौटे धरती पर डायर वुल्फ?

कंपनी ने 13 हज़ार साल पुराने दांत और 72 हज़ार साल पुराने खोपड़ी से निकाले गए DNA का इस्तेमाल कर, CRISPR टेक्नोलॉजी के ज़रिए 14 जीन में 20 एडिट किए. फिर इन एडिटेड सेल्स को क्लोन किया गया और उन्हें घरेलू कुत्तियों के जरिए जन्म दिलाया गया.

इनमें से दो नर पिल्लों का जन्म 1 अक्टूबर 2024 को और एक मादा पिल्ला का जन्म 30 जनवरी 2025 को हुआ. कंपनी का दावा है कि यह “दुनिया के पहले सफल de-extinction” यानी मृत प्रजाति के फिर से जीवित होने का मामला है.ये पिल्ले एक 2,000 एकड़ की जगह पर रखे गए हैं, जहाँ 10 फीट ऊँची सुरक्षा दीवार, ड्रोन, कैमरे और सिक्योरिटी स्टाफ उनकी निगरानी कर रहे हैं। अमेरिकी कृषि विभाग और Humane Society से यह साइट प्रमाणित भी है.

क्यों खास है ये काम?

Colossal ने पहले भी हाथी जैसे woolly mammoth, डोडो और तस्मानियन टाइगर को दोबारा लाने की योजना बनाई थी, लेकिन डायर वुल्फ पर काम गोपनीय था. अब जब यह पहली बार सामने आया है, तो इसे विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग माना जा रहा है.

हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि ये पिल्ले पूरी तरह से डायर वुल्फ नहीं, बल्कि उनके जैसे दिखने वाले हाइब्रिड हैं. इनका जीनोम 99.9% ग्रे वुल्फ जैसा है. लेकिन इनका लुक, फर और बनावट पुराने डायर वुल्फ जैसी ही है, जिससे इन्हें ‘डायर वुल्फ फिनोटाइप’ कहा जा रहा है.

इस प्रयोग पर विवाद क्यों हो रहा है?

कुछ विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं कि क्या इतना पैसा (कंपनी अब तक $435 मिलियन जुटा चुकी है) विलुप्त प्रजातियाँ ज़िंदा करने पर लगाना सही है? क्या इन पिल्लों का कोई पारिस्थितिकीय (ecological) उद्देश्य होगा, या ये सिर्फ़ विज्ञान का शो-पीस बनकर रह जाएँगे?

Montana विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्रिस्टोफर प्रेस्टन कहते हैं, हम तो अभी मौजूदा ग्रे वुल्फ की जनसंख्या नहीं बचा पा रहे हैं, तो डायर वुल्फ को जंगल में छोड़ना फिलहाल कल्पना ही है.

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