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परमाणु नहीं, पानी करेगा ईरान के खामेनेई का असली खेल, इस रिपोर्ट से हड़कंप

परमाणु नहीं, पानी करेगा ईरान के खामेनेई का असली खेल, इस रिपोर्ट से हड़कंप

ईरान में गहराता जा रहा है पानी का संकट

ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला खामेनेई, जो अक्सर परमाणु हथियारों के जरिए दुनिया को डराने की धमकी देते हैं, इस बार खुद एक नए खौफ से जूझ रहे हैं. उनका डर अब बम या मिसाइल नहीं, बल्कि पानी की कमी है. देश में भयावह जल संकट ने उनकी नींद उड़ा दी है.

और यह खतरा केवल पर्यावरण पर नहीं, बल्कि ईरान की सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता पर भी मंडरा रहा है. खामेनेई की चिंता अब इस जल संकट से और भी गहरी हो गई है, क्योंकि देश के कई बड़े प्रांतों में पानी की स्थिति “टिपिंग पॉइंट” यानी नाजुक मोड़ पर पहुंच गई है.

96 फीसदी खाली हैं हो चुके हैं डैम

ईरानी ऊर्जा मंत्रालय के हालिया बयान में बताया गया है कि तेहरान, इस्फहान, रज़वी खुरासान और यज़्द जैसे प्रमुख प्रांतों में जल संकट विकराल रूप ले चुका है, और राजधानी तेहरान को पानी देने वाला करज डैम अब केवल 6% क्षमता पर काम कर रहा है, जिसका मतलब है कि डैम का 94% हिस्सा खाली है.

कैसे पानी के संकट की कगार पर खड़ा है ईरान?

ईरान के जल संकट की जड़ें देश की नीतियों और जनसंख्या में बढ़ोतरी में छिपी हैं. 1979 की क्रांति के बाद, धार्मिक नेतृत्व ने आत्मनिर्भर कृषि व्यवस्था पर जोर दिया, जिससे जल की खपत कई गुना बढ़ गई. पिछले 50 वर्षों में जनसंख्या 250% से ज्यादा बढ़ी, जिससे पानी की मांग में भी इजाफा हुआ है.

इसके अलावा, अफगानिस्तान से आने वाले लाखों अवैध प्रवासियों और गांवों से शहरों की ओर बढ़ रहे पलायन ने शहरी जल आपूर्ति पर दबाव बढ़ा दिया है. हेलमंद नदी से जल आपूर्ति भी रुक गई है, जिससे अफगानिस्तान और ईरान के रिश्तों में तनाव भी बढ़ा है.

पानी के बिना घंटों रहने को मजबूर लोग

ईरान में लोग घंटों पानी के बिना रहने को मजबूर हैं, और कई बार नलों से कीचड़ निकलता है. अस्पतालों में पानी की कमी से मुश्किलें बढ़ रही हैं, और खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित हो रही है. इस संकट का असर न केवल इंसानों, बल्कि प्रकृति पर भी पड़ा है.

प्रकृति भी झेल रही है पानी संकट की मार

उर्मिया झील, जो कभी मध्य पूर्व की सबसे बड़ी खारे पानी की झील थी, अब सिकुड़कर 1000 वर्ग किमी से भी कम रह गई है. इसके कारण स्थानीय जीव-जंतुओं की प्रजातियां खत्म हो रही हैं और नमक-धूल के तूफानों से स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हालात ऐसे ही बने रहे, तो जल संकट देश की राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है.

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