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अमेरिका ने ढूंढ निकाला मुस्लिम देशों का नया ‘बिचौलिया’, देखते रह गए सऊदी और कतर

अमेरिका ने ढूंढ निकाला मुस्लिम देशों का नया 'बिचौलिया', देखते रह गए सऊदी और कतर

ओमान में संधि पर बातचीत

परमाणु बम को लेकर ईरान और अमेरिका के बीच उपजे तनाव को खत्म करने का जिम्मा इस बार अरब देश ओमान को मिला है. पहले यह काम सऊदी अरब और कतर जैसे देशों के जिम्मे था. कतर ने ही पिछली बार अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु डील कराया था, लेकिन इस बार ईरान ने कतर की जगह ओमान को चुना.

सवाल उठ रहा है कि आखिर ओमान में ऐसी क्या बात है, जिसे अमेरिका और ईरान ने शांति के लिए कतर और सऊदी से ज्यादा उपर्युक्त माना.

पहले जानिए ओमान है कहां?

ओमान अरब प्रायद्वीप का एक देश है, जो यमन, सऊदी से घिरा है. इसकी समुंद्री सीमा ईरान से भी लगती है. ओमान मुस्लिम बहुल देश है और इसकी आबादी करीब 55 लाख है. ओमान में 5 लाख से ज्यादा भारतीय प्रवासी रहते हैं.

ओमान को साल 1651 पुर्तगाली साम्राज्य से आजादी मिली थी. इसके बाद से ही यह देश स्वतंत्र है. ओमान में समंदर, पहाड़ और रेगिस्तान तीनों है, जिस कारण यह दुनियाभर के पर्यटकों को भी खूब लुभाता है.

सवाल- ओमान को ही क्यों चुना?

संधि के लिए ओमान को चुने जाने की 3 मुख्य वजहें हैं. पहली वजह ईरान का कतर और सऊदी जैसे देशों पर भरोसा न होना है. ईरान का कहना है कि सऊदी और कतर अमेरिका का बिचौलिया है. ईरान ने हाल ही में बयान जारी कर कहा था कि सऊदी और कतर अगर अमेरिका को सैन्य ठिकाना मुहैया कराता है, तो हम पहले उसी पर हमला करेंगे.

दूसरी वजह ओमान का अमेरिका से रिलेशन है. ओमान अरब द्वीप का पहला देश है, जिसने 1841 में दूत भेजकर संयुक्त राज्य अमेरिका को मान्यता दी थी. 1790 में ओमान में पहली बार अमेरिका का जहाज उतरा था.

ओमान का रिश्ता ईरान से भी ठीक है. ओमान ईरान के साथ होर्मुज जलडमरूमध्य को साझा करता है जो विश्व तेल और गैस हस्तांतरण का प्रमुख प्रवेश द्वार है. ईरान पर जब दुनिया के देशों ने बैन लगाया, तब भी ओमान उसके साथ खड़ा रहा. ओमान अमेरिका के दबाव नीति को नहीं मानता है और तटस्थ भूमिका में रहता है, इसलिए ईरान को ओमान ज्यादा पसंद है.

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